नफरत छोड़ो, होली है बोलो।
नफरत छोड़ो, होली है बोलो।
एक दूसरे का विश्वास टूटा,
लोगों को धर्मों में बांटां,
बच्चे, बुढ़े, जवान,
औरत या मर्द,
नहीं किया लिहाज,
बस दंगाइयों ने फैलाया,
नफरत का जाल।
परंतु सलाम,
उन पड़ोसीयों को,
नहीं देखा धर्म,
न जात,
बस की इंसानियत की बात,
उठ खड़े हुए,
अपने आस पड़ोस के साथ,
निभाया पड़ोसी धर्म बेबाक,
यही है होली का पैगाम।
भुलादो ग़म,
रख दो दुश्मनी एक तरफ,
बहुत हो चुका,
खून का खेल,
अब आगे बढ़ो,
सलीम, चनन सिंह,
पण्डित गोबिंद, डिसुजा इत्यादि
लो हाथों में गुलाल,
मिटा दो बैर बिरोध,
बनो हिंदोस्तान,
होली के साथ।