माँ
माँ
तुम्हें लाने की खातिर मां ने, सहसो दर्द को पाला,
न सो पाती कभी ढंग से, गुजारी रात सब काला,
तुम्हे तकलीफ न हो गर्भ में भी ध्यान रखती थी,
तुम्हारे ख्वाब बुनती थी, कि ऐसा हो मेरा लाला।
घड़ी वो भी चली आयी, तुम्हारा जन्म होना था,
बढ़ी तकलीफ थी माँ की, मौत आसान उससे था,
भुलाया दर्द को माँ ने,भुलाई सारी पीड़ा को,
चाँद फीका लगा उसको, प्यारा उसका लाला था।
लरज़ते होठ थे माँ के, सुनाते लोरियाँ तुमको,
कदम थकते नहीं माँ के, भगते थे खिलाने को,
तुम्हें जब खरोंचे जिस्म पर आया है ये सुन लो,
किया महसूस पीड़ा मां ने, रोना भी आया उसको।
लौटने में तुम्हें घर को, कभी जब देर होता था,
दौड़ती थी, देखती थी, कोई भी आहट होता था।
सुकूं होता नहीं दिल में, दुआएं भी करती रहती
डर भी लगता बहुत था, कभी जब देर होती थी।
