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KAVY KUSUM SAHITYA

Drama

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KAVY KUSUM SAHITYA

Drama

वर्तमान की लड़की भविष्य की नार

वर्तमान की लड़की भविष्य की नार

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अपनी धुन में खोया चला जा रहा था अंजानी राह  

चीलचिलाती धुप में किनारे सड़क पर!!   

पीठ पर अपने दूध मुहे बच्चे को कान्धे पर 

बांधे तोड़ती थी पथ्थर कभी अपने वात्सल्य के प्यार

दुलार को संभालती कभी पथ्थर को तोड़ती माँ !   


माँ मानव की जननी मानवता से हारी संवेदना के सुर बजे

बेदना के तार पर दे गए सन्देश मानवता के व्यवहार पर !

आगे कुछ दूर और चला देखा कुछ दृश्य अजीब सूनसान

सड़क की राह पर एक्का दुक्का आते जाते लोग!!    


एक लड़की भोली भाली सी वदन पर कपडे मैले भागती

हांफती खुदा भगवान को पुकारती खुद के लिए भीख मांगती !

नंगे पाँव चहरे पे भय का भाव पीछे मनचले उसके

इज़्ज़त का करने को तार तार आ धमके !    


मदद की लिए आस आयी मेरे पास बोली बाबूजी बचा लीजिये

भूखी थी गयी थी मांगने रोटी ये तो आमादा है मेरी ही खाने को बोटी !  

 भूखे शायद कुछ दिन जिन्दा रह जाउंगी मगर नहीं बची मेरी

लाज शर्म से मर जाउंगी माँ भारती क्या बताउंगी !


 कैसी है तेरी संतान माँ बहन बेटी के रिश्तों से अनजान !      

बचा तो लिया पर सोचता रहा कब तक बच पाएगी क्या

जिन्दा रह पाएगी संवेदना के सुर बजे वेदना के तार पर !


उठी एक झंकार समझने की कोशिश करता रहा

क्या संवेदना हो गयी है समाप्त वेदना का

दुनिया से उठ गया है विश्वास।


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