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Kumar Gaurav Vimal

Abstract Drama Inspirational

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Kumar Gaurav Vimal

Abstract Drama Inspirational

उसूल...

उसूल...

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उसूल नहीं ये भूल हैं,

फ़िर क्यों ये तुम्हें कुबूल है...

नज़रिया कैसे साफ़ रहेगा,

आंखों में जमी जब धूल हैं...

उसूल नहीं ये भूल हैं,

फिर क्यों ये तुम्हें कुबूल है...


जंग लगी ये पायल,

बन जाए ना पैरो की बेड़ियां...

उतार दो पुराने जूतों को,

घिसने लगे जब ऐड़ियां ...

हर्ज़ क्या है निकालने में,

चुभ रहा जब शूल हैं...

उसूल नहीं ये भूल हैं,

फ़िर क्यों ये तुम्हें कुबूल है...


बदल दो ये रीतियाँ,

बनाए है जो रिवाज़ ने...

निकाल दो ये पट्टियां,

पहन रखा है ज

ो समाज ने...

उड़ने की है जब ख्वाहिश,

तो पिंजरे में रहना फ़िज़ूल हैं...

उसूल नहीं ये भूल हैं,

फिर क्यों ये तुम्हें कुबूल है...


भाए ना ये औरों को,

अपनों को ना पसंद हो...

जुड़ जाएंगे कई सुर,

आवाज़ जो तुम्हारी बुलंद हो...

हज़ारों साल पुरानी बातों का,

रह ना गया अब कोई तूल हैं...

उसूल नहीं ये भूल हैं,

फ़िर क्यों ये तुम्हें कुबूल है...


नज़रिया कैसे साफ़ रहेगा,

आंखों में जमी जब धूल हैं...

उसूल नहीं ये भूल हैं,

फ़िर क्यों ये तुम्हें कुबूल है...



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