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Kumar Gaurav Vimal

Abstract Drama Tragedy

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Kumar Gaurav Vimal

Abstract Drama Tragedy

ढूंढकर किसी को आज

ढूंढकर किसी को आज

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ढूंढकर किसी को आज हमने,

ख़ुद को ख़ुद से खोया हैं..

पाकर उसे ना पा सके,

ये किन सपनों में दिल सोया हैं..


हाथ कटे है मेरे भी,

पैरों में पड़े छाले है..

क्यों ख़ुदपर इतना ज़ुल्म किया, 

क्यों बन बैठे मतवाले हैं...


टूटे दिल को जोड़ते हुए,

ख़ुशी से ये दिल रोया है..

ढूढ़कर किसी को आज हमने,

ख़ुद को ख़ुद से खोया हैं...


ना इल्म हमारे ज़ख्म का उन्हें, 

ना दर्द का उन्हें अहसास है...

हर पल हमसे वो दूर जाते,

जब भी आते हमारे पास है...


फूलों की दिल में चाह रखकर,

काँटों को हमने पिरोया है...

ढूढ़कर किसी को आज हमने,

ख़ुद को ख़ुद से खोया हैं...


पाकर उसे ना पा सके,

ये किन सपनों में दिल सोया हैं..

ढूढ़कर किसी को आज हमने,

ख़ुद को ख़ुद से खोया हैं...


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