गुल्लक
गुल्लक


गुल्लक तोड़ निकाले हैं,
कुछ सिक्कें हमने ख़्वाब के...
सजाकर रखा था जो अबतक,
दिल के इस ख़ाली किताब में...
मोल बड़ा था सिक्कों का,
ये पूँजी हमारी ख़ास थी...
कुछ सपने रखे थे बचाकर...
कुछ अनकही अहसास थी...
कुछ सवाल संभाल के रखें थे,
इंतज़ार था बस उनके जवाब के...
सजाकर रखा था जो अबतक,
दिल के इस ख़ाली किताब में...
अहसास की सास चली गयी,
साथी जो अपना छूट गया...
अब क्या बताए सपनों के साथ,
इस दिल में क्या क्या टूट गया...
समय लगेगा बहुत अभी,
इस नुक़सान के हिसाब में...
सजाकर रखा था जो अबतक,
दिल के इस ख़ाली किताब में...
गुल्लक तोड़ निकाले हैं,
कुछ सिक्कें हमने ख़्वाब के...
फूल निकाल दिया है पन्नों से,
पंखुड़ियां ही बची है गुलाब के...
सजाकर रखा था जो अबतक,
दिल के इस ख़ाली किताब में...
गुल्लक तोड़ निकाले हैं,
कुछ सिक्कें हमने ख़्वाब के...