आहिस्ता आहिस्ता वो मेरे, आसमां पर छा गए...
आहिस्ता आहिस्ता वो मेरे, आसमां पर छा गए...


हम दूर जितना भी हुए,
वो पास दिल के आ गए...
आहिस्ता आहिस्ता वो मेरे,
आसमां पर छा गए...
क़िस्मत से अदालत में,
अनायस ही हम यूँ मिले..
समोसे के सिरहाने फ़िर,
बन गए कई सिलसिले...
हम इंतज़ार किया करते थे,
की इस पहर वो कहाँ गए...
आहिस्ता आहिस्ता वो मेरे,
आसमां पर छा गए...
हमदम से वो हमराज़ बने,
अंजान से दिल की आवाज़ बने..
हम जो अक्सर गाया करते थे,
उस सूर की वो साज़ बने...
आधे घंटे की मुलाक़ात को,
वो 10 min का बना गए...
आहिस्ता आहिस्ता वो मेरे,
आसमां पर छा गये...
>निशानी आख़री ना ले पाया,
आख़री उनसे मुलाक़ात में...
मिलने की बात करते है अब,
उनसे की हर बात में..
दिल में जिन्हें समाना था,
वो ख्वाबों में घर बना गए...
आहिस्ता आहिस्ता वो मेरे,
आसमां पर छा गए...
आप-तुम की कश्मकश में,
करार अभी भी जारी है..
मोहब्बत की इस तराज़ू पर,
दोस्ती का पलड़ा भारी है...
Serious ना होने की फ़रमाईश पर,
हम हाल-ए-दिल फ़रमा गए..
आहिस्ता आहिस्ता वो मेरे,
आसमां पर छा गए...
हम दूर जितना भी हुए,
वो पास दिल के आ गए...
आहिस्ता आहिस्ता वो मेरे,
आसमां पर छा गए...