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Kumar Gaurav Vimal

Abstract Drama Tragedy

4.5  

Kumar Gaurav Vimal

Abstract Drama Tragedy

​​हम आवाज़ देते रह गए...

​​हम आवाज़ देते रह गए...

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हम आवाज़ देते रह गए,

तुम खोये ख़ुद में रह गए...

वो रात हसीं बीत गयी,

तुम सोये सुध में रह गए...

हम आवाज़ देते रह गए,

तुम खोये ख़ुद में रह गए...

 

आँखें रहीं तेरी राहों पर,

सपने तेरे रहे सिरहाने...

ज़माना लगा समझने पागल,

हम ऐसे तेरे हुए दीवाने...

हम सब कुछ लुटा बैठे,

तुम होये ख़ुद के रह गए...

हम आवाज़ देते रह गए,

तुम खोये ख़ुद में रह गए...


एक कश्ती इश्क़ की बनाई थी,

पतवार लिया था तेरे नाम का...

एक सफ़र तय करने की चाहत थी,

हमसफ़र लिया तुझे शाम का...

वो सफ़र अधूरी रह गयी,

तुम कश्ती डुबोये रह गए...

हम आवाज़ देते रह गए,

तुम खोये ख़ुद में रह गए ...


वो रात हसीं बीत गयी,

तुम सोये सुध में रह गए...

हम आवाज़ देते रह गए,

तुम खोये ख़ुद में रह गए...


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