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KAVY KUSUM SAHITYA

Inspirational

4  

KAVY KUSUM SAHITYA

Inspirational

कथानक काव्य

कथानक काव्य

3 mins
87



कथा एक सुनाता हूँ महाभारत के महायोद्धा की बात बताता हूँ।

सारे यत्न प्रयत्न व्यर्थ ,युद्ध घोष की दुन्धभि का बजना निश्चय निश्चित था।।             

रथी ,अर्ध रथी ,महारथी युद्ध में लड़ने वाला हर योद्धा, युद्ध कौशल, शत्र ,ज्ञान का पारंगत था।।

अठ्ठारह दिन अवधि निर्धातित विजय वरण कीसका करेगी छिपा काल के अंतर मन में था।।

पितामह ,अर्जुन ,द्रोण कर्ण ,अगणित योद्धा का विजय चरण का दास था।।           

हर योद्धा काल, विकट ,विकराल था।

               

महाभारत के महायुद्ध का वर्तमान इतिहास था।।

वीर एक ऐसा भी धीर, वीर ,गंभीर युग में अज्ञात था।         

चल पड़ा अकेले ही कुरुक्षेत्र की विजय का पताका लिये हाथ । 

पल भर में ही युद्ध करने समाप्त करने का सौर्य संकल्प साथ था।।

केशव, मधुसूदन ,बनवारी गिरधारी को हुआ ज्ञात ।  

नियत के निर्धारिण का क्या होगा हाल?             

कुरुक्षेत्र में गीता के उपदेश निष्काम कर्म युग संदेस कौन सुनेगा?              

कृष्णा ने मार्ग में ही महायोद्धा से कीया प्रश्न।            

कौन हो कहाँ जा रहे हो क्या है प्रयोजन।।            


बर्बरीक है नाम हमारा , महाभारत का महा युद्ध लड़ने को मैं जाता हूँ ।                 

पलक झपकते ही युद्ध समाप्त कर मैं विजय पताका मैं लहराता हूँ।                   

सारे योद्धाओं को अभी मै कुरुक्षेत्र में चिर निद्रा का शयन कराता हूँ।।

कृष्ण ने नियत काल भाग्य भगवान् प्रारब्ध पराक्रम का दिया उपदेश ।             

हठधर्मी बर्बरीक ने एक भी नहीं सुना कृष्णा का कोई उपदेश।।               

कृष्णा ने महाबीर बर्बरीक की साहस, शक्ति ,शत्र ,

शा्त्र की परीक्षा की इच्छा का कीया आवाहन ललकारा ।।       

बोले कृष्णा यदि एक बाण से बट बृक्ष के सारे पत्तों का भेदन कर पाओगे।

तेरी युद्ध कौशल वीरता के हम भी कायल हो जाएंगे ।।       


फिर चुपके से बट बृक्ष का एक पत्ता अपने चरणों के निचे दबा लिया।।

बर्बरीक भी भाग्य भगवान की परीक्षा को स्वीकार किया ।    

ललकार स्वीकार कर को धनुष वाण संधान किया          

दक्षता की परीक्षा का शंखनाद कीया।

एक बाण से बट बृक्ष के सारे कीसलय कोमल पत्तो का भेदन संघार किया।           

जब लौटा बर्बरीक का बाण कृष्णा ने बट बृक्ष के सारे पत्तो का भेदन देखा।  


वीर बर्बरीक अब भी एक पत्ता भेदन से वंचित है कृष्णा ने बोला ।       

बर्बरीक बोला हे मधुसूदन देखो अपने चरणों के नीचे।        

समस्त ब्रह्मांड की परिक्रमा कर मेरा बाण आपके चरणों के नीचे छिपे हुये पत्ते का भेदन कर लौटा।।               

कृष्णा ने देखा चमत्कार के पराक्रम ,पुरुषार्थ को ।     

बोले कर सकते हो नियत काल को पल भर में सिमित।।

दिखलाया आदि अनन्त स्वरूप् अपना बोले वर मांगों।   

बर्बरीक तब बोला मेरी मंशा मैं देंखु कुरुक्षेत्र के भीषण युद्ध को।


एव मस्तु कह कृष्णा ने चक्र सुदर्शन को आदेश दिया

बर्बरीक का मस्तक धड़ से अलग किया ।।                

कटे हुए मस्तक को लटकाया कुरुक्षेत्र को दिखने वाली पहाड़ी की ऊंचाई पर।

बोले मधुसूदन इस युद्ध के हो तुम न्यायाधीश ।      

बतलाओगे हार जीत के महारथी और तीर ।।

भयंकर युद्ध समाप्त हुआ कुरुक्षेत्र की धरती वीरों के रक्त अभिषेक से लाल हुई।          


अहंकार के मद में चूर आये विजयी बर्बरीक पास ।  

कीया सवाल कौन बाली कौन महा बली?

कौन विजेता कौन पराजित? 

बर्बरीक तब बोला मधुसूदन लड़ता, मधुसूदन मरता ,जीता।

मधुसूदन ही विजयी और पराजित ।।

          

तुम सब मात्र निमित्त ,यह तो इस पर ब्रह्म की लीला थी निर्धारित।

अहंकार के विजेता का अभिमान चूर हुआ असत्य पराजित सत्य पथ आलोकीत का युग साक्षात्कार हुआ।।               

बर्बरीक फिर बोला मेरे लिये क्या आज्ञा है।              

कृष्णा ने आशिर्बाद दिया तुम कलयुग में मेरे जैसे पूजे जाओगे।

कलयुग में मेरे ही स्वरुप तुम खाटू श्याम कहलाओगे।।      

पुरुषार्थ ,पराक्रम ,प्रेरणा की भारत की गौरव गाथा पीताम्बर गा गया।              

कृष्णा के निष्काम कर्म के युग की महिमा बतला गया।।



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