मैं वो नहीं जो तुम समझते हो
मैं वो नहीं जो तुम समझते हो
मैं वो पानी नहीं हूं
जो जमकर बदबू दे जाऊं
मैं वो पानी हूं जो गंगा में
जाकर अमृत बन जाऊं
मैं वो हवा नहीं जो
आंधी बनकर सब बहा ले जाऊं
मैं तो वह हवा हूं जो
कड़कती धूप में भी राहत दे जाऊं
मैं वो आकाश नहीं जो
सिर्फ टूटते तारों को गिन पाउं
मैं वो आकाश भी हूं
जो इंद्रधनुष बनाकर दिखाऊं
मैं वो आग नहीं हूं
जो फूंक मारते ही बुझ जाऊं
मैं जल जाऊं तो भेदभाव नहीं
एक समान सबको श्मशान में जलाऊं
मैं वो पानी,हवा, आकाश, आग हूं
जो हर बार एक नया रूप दिखाऊं।
