खुद को गढ़ना होगा
खुद को गढ़ना होगा
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खुद को गढ़ना.... होगा
अपनी तकदीर से ,
अब तुम को,
ख़ुद ही लड़ना होगा।
तुम हाथों की ,
कठपुतली नही।
अपने अस्तित्व को,
ख़ुद ही गढ़ना होगा।
ख़ुद ही लड़ना होगा।
अपनी तकदीर से ,
अब तुम को,
युगों- युगों से ,
हाथों के कारागृह बदलते आये है।
तुम को कैसे जीना है।
यह सीखाने वाले,
बस नाम बदलते आयें है।
अपने नाम को,
नारी तुम....
आयाम नये भर दो।
खोखले आडंबरों पर ,
पलट अब वार जरा कर दो।
ख़ुद को गढ़ कर,
अपनी पहचान से जुड़ी,
रूढियों को जड़ तुम कर दो।
जीवन को अस्तित्व देती हो।
तुम क्यों रहो मोहताज़।
ख़ुद को गढ़ लो।
फौलाद से,
तोड़ दो अबला का ताज।