मातृभूमि
मातृभूमि
सोए हो सिंह तुम्हें माता ने बुलाया है,
धू-धू करे धरा किसने यह आग लगाया है।
आतंकवाद है काली छाया कोई,
आजाद दिवाकर ही इसे आजमाया है।
शोणित बहे थे धरती रज-रज में,
आज ममता के दामन ने याद दिलाया है।
धर्म-कर्म बिना न फलित होंगे,
मातृभूमि ने मंत्र यही सिखलाया है।
कल तलवारों से तलवारें टकराईं,
फिर भावनाएं अभी क्यों टकराया है।
हॅंसता हुआ चमन था सुगंधित,
चंद काॅंटो ने सारी सृष्टि आज नामाया है।
अपने ही मुल्कों ने साथ छोड़ा था,
पर इसी पावन धरणी ने तुम्हें अपनाया है।
घाव न भर सके तो घाव न देना,
कुरेद रहे हो जिन जख्मों को भर नहीं पाया है।
मानव हो तो मानवता शेष रहे,
इंसानियत बिन इंसान भी चौपाया है।
ध्रुव प्रहलाद हो युवा तुम योग्य बनो,
देश भक्ति है सब कुछ बाकी मोह और माया है।
सोए हो सिंह तुम्हें माता ने बुलाया है,
धू-धू करे धरा किसने यह आग लगाया है।