अस्तांचल गामी सूर्य
अस्तांचल गामी सूर्य
आसान नहीं होता है
अस्तांचल गामी सूर्य होना।
उतरना पड़ता है,खुद ही अपने शिखर से
और....स्वेच्छा से करना पड़ता है
अपना स्थान रिक्त।
अपने प्रचंड ताप को किसी नदी में डूब,
करना पड़ता है शांत
और निस्तेज हो,
साँझ के आँचल में छिपना पड़ता है।
पर.....सिर्फ़ यही तो नहीं।
साँझ के आँचल में छिपने से पहले,
निस्तेज चन्द्र को अपनी आभा दे,
वो उसके भी अस्तित्व को
जीवित रखता है।
स्वयंभू नहीं बनता
अपितु....
स्वयं अस्त होकर भी तारों को अपना तेज दे
उन्हें बनाता है रात्रि का प्रहरी
और....
खुद निश्चिंत हो शान्त और मौन रह के,
करता है नवीन ऊर्जा संचित
ताकि.....
फिर से भोर में उदित हो
नव दिवस का आवाहन कर सके।
दैदीप्यमान हो मनुष्य को
कर्म का पाठ पढ़ा सके
और....
सृष्टि के आरंभ से आजतक
उदित और अस्त होने के बीच
अपना कर्तव्य निभा सके।
आसान नहीं होता
अस्तांचल गामी सूर्य होना।
बुझना पड़ता है
फिर से जलने के लिए.....।