हम -तुम
हम -तुम
जब-जब गम का साया लहराया,
आँचल की तरह तुम सरपरस्त थे
जब आसूं पलकों तक आया,
परछाई की तरह तुम साथ थे
जब जब तन्हा यें दिल घबराया,
थामने के लिए तुम्हारे हाथ थे
जब खुशियों का संसार मिल गया,
प्रशंसा भरे तुम्हारे अल्फाज़ थे
जब खुद पे से भरोसा छूटा,
आश्वसत करने को साथ तुम्हीँ थे,
पर आज तुम यें कहते हों कि
तुम तो मेरे आस-पास कहीं थे ही नहीँ,
जितना फासला है चाँद और धरती का,
उतनी ही दूरी रही तुमसे मेरी.
अब तुम्हें कैसे समझायें,
कैसे पढ़ें कैसीदे उस प्रेम- कहानी के,
जब प्रत्यक्ष रूप से संग न होते हुए भी,
साथ सदा साये की तरह होता है,
प्रेम की मजबूत डोर के बलबूते विश्वास
उसके मौजूद होने पे हर पल आसक्त रहता है,
सब जग रूठ जाएं जिस पल,
उसके अनूठे साथ का अहसास हर दम ज़िंदा रहता है,
अब बतलाओ, तुम्हारा तर्क सही है,
या मेरा कि मेरे हर पलछिन हर लम्हें,
हर मंज़र में कुछ इसी तरह तुम्हारा स्पर्श बना रहता है ?
सरसाराती-गुनगुनाती हवाएं सुनाती हैं
इस प्यार की दास्ताँ जब,
गवाही देती इस अनोखे अंदाज़ में प्रकृति भी,
कि यकीन हों ही जाता
अपने इस रिश्ते की परिपक्वता में सभी को तब।