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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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283



दोस्त बनकर जाने ए जिगर हो गई

रात दिन अब परेशा नज़र हो गई


चोट खाते  रहे मुस्कुराते रहे

इस तरह जिंदगी मुख़्तसर हो गई


हाल पूछो नहीं अब हमारा सनम

ये मुहब्बत मिरे दर्द सर हो गई


यार करनी नहीं थी मोहब्बत हमें

ये मुहब्बत मेरे यार पर हो गई


इस तरह हो गया ये मर्ज़ ए वफ़ा

हर दुआ अब यहाँ बेअसर हो गई


प्यार हमने छुपाया जहाँ से बहुत 

क्या पता सबको कैसे खबर हो गई


मुंह लगाया उसे जान भी जाएगी 

यार तेरी वफ़ा भी ज़हर हो गई


रात करवट बदलते कटी आज यूं

जागते जागते ही सहर हो गई


लिख रहे थे यहाँ हाल दिल का धरम

और अपनी ग़ज़ल की बहर हो गई।।



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