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Nazim Ali (Eʁʁoʁ)

Drama Inspirational

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Nazim Ali (Eʁʁoʁ)

Drama Inspirational

मुल्क़

मुल्क़

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ऐ मेरे मुल्क़ बता आज बता,

ऐ मेरे मुल्क़ बता आज बता।


इतने दिन से तू छुपके खुद से ही रोता क्यों है,

इतने दिन से तू छुप के खुद से ही रोता क्यों है।


तेरा ऊँचा मक़ाम है ये पता है हमको,

तेरा ऊँचा है मक़ाम ये पता है हमको।


क्यों भला इस तरह दर्जा तेरा खोता क्यों है ?


नाला-ए-रूस नहीं है जो मातमी होगा,

न फिरंगी है जो ज़ालिम हो इन्तेहाई तू,

न है मिस्त्री आना तेरी जो बिखर जाएगी,

न है रूमी घटा जो छा के गुज़र जाएगी।


हिन्द है हिन्द तू मत भूल हैसियत तेरी,

दोनों सिम्तो में है मक़बूल शख्सियत तेरी।


अपने अश्क़ो में खुद को फिर तू डुबोता क्यों है,

ऐ मेरे मुल्क़ बता फिर बता रोता क्यों है।


ये वही मुल्क़ है मंदिर भी हैं मस्जिद भी जहाँ,

है कही मस्त भजन और कहीं पर हैं अज़ाँ,

ये वही मुल्क़ है जो सूफियों का मर्क़ज़ है,

है कही हिंदी कही फ़ारसी का मख़रज है।


अपनी अफ़्सुर्दगी में खुद को भिगोता क्यों है,

ऐ मेरे मुल्क़ बता फिर बता रोता क्यों है।


माना मैंने के,

माना मैंने के हवा बदली है तेज़ी से ज़रा,

फितनापरवर है ये हुक़्क़ाम ये सरकार ज़रा,

मैंने माना के है मग़लूब हक़ का दामन भी,

मैंने माना के है ठंडी है बेरेहम भी।


पर यकीन है मुझे,

पर यकीन है मुझे, लम्बा न ये अरसा होगा,

ज़ालिम ए वक़्त न तू, न तेरा चर्चा होगा,

हम मिटा देंगे उठाई है जो भी दीवारें,

तेरे ही सर क़लम करेंगी तेरी तलवारें।


ऐ मेरे मुल्क़ के अब तो ज़रा हँस दे थोड़ा,

ऐ मेरे मुल्क़ तू है जान मेरी शान मेरी,

ऐसी बातों से दिल को छोटा न करना फिर से,

हम निपट लेंगे सिकंदर से भी और नादिर से।


ऐ मेरे मुल्क़ के अब फिर मिलेगी आज़ादी,

ऐ मेरे मुल्क़ न कहना पड़े रोता क्यों है।


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