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Nazim Ali (Eʁʁoʁ)

Tragedy

3  

Nazim Ali (Eʁʁoʁ)

Tragedy

बेशर्म

बेशर्म

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बहुत शर्मिंदा हो जाता हूँ

जब अख़बार पढ़ता हूँ ।


के पहली ही खबर में

जब बलात्कार पढ़ता हूँ।


के अब तो हर सुबह मैं 

खुद पे भी धिक्कार करता हूँ 


बहुत शर्मिंदा हो जाता हूँ

जब अख़बार पढ़ता हूँ ।


हर एक बस्ती में जैसे 

अब तो ये मामूल लगता है 


जाने कब से इन लाशों 

को बार बार पढ़ता हूँ 


बहुत शर्मिंदा हो जाता हूँ 

जब अख़बार पढ़ता हूँ !


न जाने कितनी ही जाने

गयी और कितनी जाएंगी


हवस की जीत और कानून

की जब हार पढ़ता हूँ।


बहुत शर्मिंदा हो जाता हूँ

जब अख़बार पढ़ता हूँ।"



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