बेशर्म
बेशर्म


बहुत शर्मिंदा हो जाता हूँ
जब अख़बार पढ़ता हूँ ।
के पहली ही खबर में
जब बलात्कार पढ़ता हूँ।
के अब तो हर सुबह मैं
खुद पे भी धिक्कार करता हूँ
बहुत शर्मिंदा हो जाता हूँ
जब अख़बार पढ़ता हूँ ।
हर एक बस्ती में जैसे
अब तो ये मामूल लगता है
जाने कब से इन लाशों
को बार बार पढ़ता हूँ
बहुत शर्मिंदा हो जाता हूँ
जब अख़बार पढ़ता हूँ !
न जाने कितनी ही जाने
गयी और कितनी जाएंगी
हवस की जीत और कानून
की जब हार पढ़ता हूँ।
बहुत शर्मिंदा हो जाता हूँ
जब अख़बार पढ़ता हूँ।"