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Savita Singh

Drama

4.8  

Savita Singh

Drama

ज़िन्दगी मौत 🌷

ज़िन्दगी मौत 🌷

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जब भी उठे हाथ मेरे, तेरी दुआ में !

हर बार हटा लिए तेरे करम से !


अब न उठेंगे कभी ये कुछ माँगने को,

माना की जिंदगी है तेरे ही करम से,

मैं छीन के लाऊँगी मौत तेरे हाथ से !


ज़िन्दगी, कितना ख़ूबसूरत शब्द है,

अंदर से कितना बदसूरत,

चाहे किसी किसी के लिए वरदान है,

अपवाद तो हर बात का है !


एक पहलू तो बड़ा ही सुन्दर है,

तमाम रिश्ते नाते प्यार खुशियाँ सब मिलते हैं,

और हम समझते हैं कि,

इनमें से कुछ समय के साथ हम खो देंगे !


अभिशाप बन जाती है ये जब हम,

समय से पूर्व ही खोना शुरू कर देते हैं,

और संभलने का मौका द

िए बिना दूसरा,

फिर तीसरा और ये सिलसिला रुकता ही नहीं !


मैं पूछती हूँ अगर तू सचमुच कहीं है,

तो क्या जरुरत थी इतने लोग और इतना प्यार,

देने की जब छीनना ही था ?

मौत, कितना बुरा शब्द है,

लोग नाम नहीं लेना चाहते, डरते हैं !


परन्तु वास्तविकता क्या है ?

मौत मतलब हर तकलीफ़, हर ग़म,

हर एहसास, हर दर्द से परे,

न पाने ख़ुशी न खोने का ग़म,

इससे ख़ूबसूरत क्या हो सकता है ?


इसका एहसास शायद वही कर सकते हैं,

जिन्होंने ये सब जिया है !

हर बार दर्द सहकर मैंने तो यही सीखा,

"मौत तू एक ख़ूबसूरत कविता है

जिसे मैं रोज गुनगुनाऊँगी जब तक तू आ नहीं जाती।"


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