STORYMIRROR

Savita Singh

Others

4  

Savita Singh

Others

रिमझिम

रिमझिम

1 min
95

शुरू हो गई, रिमझिम बारिश

छतरी ले के निकल गई घर से वो

पास के उजड़ चुके जंगलनुमा पार्क की ओर

एक लोहे की बेंच जो सही सलामत थी

हमेशा वो छतरी खोल बेंच पर पाँव रख

उसके ऊपर बैठती,

कोई कीड़ा न आ जाए पाँव पर

यहाँ बैठ यादों में गुम हो जाना 

बहुत अच्छा लगता

वो यादें जो कभी थी ही नहीं

वो जिसे जानती नहीं, जिसे मिली भी नहीं

कितनी बातें होतीं उसे बताने को


छतरी के कोनों से टपकते हुए पानी को 

बड़े प्यार से देखती

मुस्कान आ जाती उसके चेहरे पर

एहसास होता कोई बगल में बैठ गया

जोर से पकड़ लेती हाथ

सारी बातें कह डालती उससे

जो वहाँ था ही नहीं

आँखें भर आती, क्यों दोस्त 

तुम हमेशा नहीं मिलते


तुम्हें पता है? मुझे बहुत तेज 

मोटी मोटी बारिश नहीं अच्छी लगती,

उससे चोट लगती है

देखो ना! तुमसे मिलने मैं रिम झिमवाली 

फुहारों में आती हूँ, लगता है तुमसे 

गले मिल लिया!

ये क्या ? तुम सिर्फ़ मुस्कुराते हो 

कुछ कहते क्यों नहीं!

भूल जाती वो की वहाँ कोई नहीं

अचानक बारिश रुक जाती

ख़ुद को उस निर्जन पार्क में पा कर 

आँसू आ जाते आँखों में

तेज़ी से कदम घर की ओर बढ़ते हैं

पलटकर एक बार देखती

लगा किसी ने कहा .....फिर आओगी न!



Rate this content
Log in