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Abhishu sharma

Drama

4  

Abhishu sharma

Drama

इन्साफ

इन्साफ

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किस्मत के तराजू में मोहब्बत का बाट रख ,

मन के आँगन में

कांटों का भार कलियों से ज्यादा कर लिया

अपने हिस्से की खुशियों को हल्का कर गम का झुकाव चाव कर लिया

जीवन की क्यारी में हंसी के फूल को ढूंढते , गम की धुल का गाँव बसा लिया

आरज़ू के तराने लिखने बैठा , तो कलम  की स्याही आँखों की नमी बन

आहों की सर्द से  कोरा कागज़ कोरा ही छोड़, सूख गयी 

वो पल दो पल का हमदर्द

दिल के चैन को मन का बोझ से लादकर

हसरत को फुर्सत की तमन्ना से सजाकर

उल्फत का दीप दिल में जगाकर

चला गया वो दीवाना बनाकर मैं बावला हो ,

क्यों चाह रहा था दूसरे का साथ ,उसका हाथ किस्मत के तराज़ू में

अपने साये से भी धोखा ही मिला , की

बेज़ारगी के बाजार में ,वफ़ा के सौदे में खफा का मुस्तफा मुझे ही क्यों हमेशा किया

अगर यही जीना है ,

गम का घूंट ही पीना है

तो ऐ खुदा!

वादा है तुझसे ,उफ़ तक नहीं निकलेगी मुंह से

अधरों पर चुप का टांका कर आंसू पी लूंगा , की

सौ बार घाव कुरेदने पर जख्म भी ज्वाला बन चर्म को इस्पात कर देता है ,और

सूखी आँखों के दर्द की पीड़ा घबराहट नहीं, आदत बन जाती है


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