यात्रा 2021- सुंदर सा जीवन
यात्रा 2021- सुंदर सा जीवन
सुंदर सा चल रहा था जीवन
मस्ती में था ये जहॉं
मस्ती में जी रहें थे सभी
मस्ती में था ये समां..
ना फिकर थी जमाने की
ना फिकर थी कुदरत की
जंगलों को तोड़ कर मौज थी इंसानों की
धुत होकर नशे में चली जा रही थी जिंदगी
अपने मौज के चक्कर में जान जा रही थी बेजुबानों की..
एक दिन सवेरा हुआ
सब कुछ थमा हुआ था
जब कुदरत ने ही हमसे नाता तोड़ दीया था..
असुर बनकर आया एक वाईरस
सब कुछ रोक दिया था..
ना समंदर का किनारा था ना बगीचों का सहारा था..
घर पर ही डर के मारे इंसानों का बसेरा था..
सालों बाद इंसान खुद के हाथों मरने से ही
डरकर घबरा रहा था...
डरकर घबरा रहा था...
अपने बूढ़े मां बाप को
नजरों में समा रहा था..
और परिवार का मतलब सही मायने में समझ रहा था..
जरूरत नहीं जश्न की जरूरत नहीं नशे की
जिंदगी का सही मतलब सबका साथ रहना था..
समझ रहा था इंसान फिर भी नहीं मान रहा था..
जब छोड़कर चले गये कुछ लोगों के अपने तब
आंसू बहा रहा था..
अभी वक्त हाथ में है
अभी भी जीया जा सकता है..
संभालकर रखो कुदरत को..
कुदरत के नायाब धरोहरों को..
बेजुबानो को समझो ओर बंद करो
अपनी मनमानीयों को..
सुंदर सा चल रहा जीवन फिर सें
चला आयेगा..
समंदर के हसीन किनारे भी होंगे.
वो हसीन कश्तियाँ और बहारें भी होंगे..
बागीचों में फूलों के नजारे भी होंगे..
और फिर सें हम सब मस्ती में जीयेंगे..
