कशिश
कशिश
न जाने क्या कशिश है आपमें
न जाने क्यों फिसलता जा रहा हूँ.....
खुद को तो भूल गया हूँ...
बस ख्वबों में ही डुबा जा रहा हूँ...
संभालनेवाला कोई नही है
आप जरा समझ लेना मुझें
बस एक मिलने की आस है
उस दिन के इंतजार में जिंदा हूँ..
और गुनगुनाते जा रहा हूँ.......
ना जाने क्या कशिश है आपमें.......
आंखें बंद करु तो चेहरा आपका
आंखें खोलूँ तो हर जगह ख्याल आपका
बस आप में ही खोया रहता हूँ
आपका ही नाम लेता हूँ
आप क्यों नहीं समझ पाते इस दिल को
आपकी ही नगमे गाता हूँ..
न जाने क्या कशिश है आपमें
न जाने क्यों फिसलता जा रहा हूँ.....
क्या वो एक दिन आयेगा ?
जब आप मेरी बाँहों में होंगे
हर पल आपके नजरोंमें हम होंगे
और आप हमारे हमसफर होंगे
आपको ही बस याद करता हूँ
आपके ही सपने बुनता हूँ
बस आपको ही चाहने लगा हूँ
न जाने क्या कशिश है आपमें
न जाने क्यों फिसलता जा रहा हूँ.....