तुम्हें देख कर
तुम्हें देख कर
दिल ख़ुशनुमा सा,
बदलें हैं मिज़ाज
होती हर सुबह
तुम्हें देख कर…
हँसी पर फ़िदा हैं तेरी
ये भँवरे
खिलते हैं चमन में गुलाब
तुम्हें देख कर…
हुस्न-ए-शबाब
संभाल के रखना
छलकते हैं ये जाम
तुम्हें देख कर…
ना यूँ लचकाओ कमसिन-ये कमर
बहक न जाएँ समां
बदलती हैं फ़िज़ाएँ
तुम्हें देख कर…
ज़रा आहिस्ता से गुज़रा करो
मेरी गली,
बेहिसाब जलते हैं, मेरे घर के चिराग़
तुम्हें देख कर…
ज़ुल्फ़ें न गिराओ
यूँ चेहरे पर अपने,
आता है खिड़की पे चाँद
तम्हें देख कर…
ख़यालों में मेरे,
न यूँ रोज़ आया करो
भटकते हैं ख़्वाब
तुम्हें देख कर…
इज़हार - ए इश्क़ तो
करना चाहता है दिल
हम भूले वो अल्फ़ाज़
तुम्हें देख कर…
हवा में है मिट्टी की महक
कहीं बरसे हैं बादल
बहकें कदम, मोहब्बत हुई लगता है
तुम्हें देख कर…
इतना भी नादाँ न बनो तुम
दिल का लगाना कहते हैं किसे ?
के न हो मालूम, लगता नहीं
तुम्हे देख कर…
लबों पे तुम्हारे ये इज़हार ही तो है
यूँ शर्म से झुकी है पलकें
ज़रा एक बार ना तो कहो
हमें देख कर...