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ARVIND KUMAR SINGH

Romance Others

4.9  

ARVIND KUMAR SINGH

Romance Others

बन के समंदर

बन के समंदर

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धड़कते हैं सांसों के सीने पता नहीं शाम थी कब और कब सुबह होती है,

तूफां से कम नहीं होता वो लमहा जब होंठों से होंठों की बात होती है...


हैरान हूं, क्‍यों कह न पाता चाह कर भी बस जज्‍बातों से हर बात होती है,

नियामत कुदरत की तुम जैसी हर एक की किस्‍मत किस रात होती है...


शरमा जाते हैं हर अक्ष आइने के जब मेरे मेहबूब की शक्‍ल वहां होती है,

 लगता है मर ही जाउंगा अगर भूले भी कोई शय हमारे दरमियां होती है...


पैदा हैं तुम्‍ही से इस दिल के दरिया में उफनते लपटों के तूफानी मंजर,

थाम लो समेट कर सैलाब को अपनी लहरों की मौजों में बन के समंदर...


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