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ARVIND KUMAR SINGH

Tragedy Inspirational

4.5  

ARVIND KUMAR SINGH

Tragedy Inspirational

झंझावात

झंझावात

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देखो आया झंझावात

पकड़ के रखना भाई हाथ

कहीं चला वो चाकू देखो

कहीं से गोली आई

बर्बर होकर टूट पड़े हैं

जुल्‍म की बदली छाई


सुनो सुनो चीत्‍कार ये कैसा

शहर हुआ शमशान के जैसा

गैर में ऐसा दम था कैसा

घर में घुस के आता जो

पर घर के ही घर वालों को

काम ये उसने सौंपा है

लगता है फिर कहीं किसी

गद्दार ने खंजर घौंपा है


बीच डगर में होता था

पहले आतंक का जोर

अब घर में घुसकर काट रहे

मचा है चहुं दिश शोर

झुण्‍ड बना जो घुसे भेडि़ये

सीमा से शहरों की ओर

रक्तिम होगी क्षितिज जहां

और लहू-लुहान सी भोर


प्रहरी सीमा पर डटा हुआ

फिर भी दुश्‍मन घुस आया है

देश के भीतर मंडराता हुआ

आतंकवाद का साया है


आओ सम्‍हलें अब तो जागें

दुश्‍मन के हम पीछे भागें

समझ सको तो समझो भाई

सशक्‍त चेतना की ये बात

वर्ना निश्चित लम्‍बी काली रात

पकड़ के रखना भाई हाथ

देखो आया झंझावात

देखो आया झंझावात।


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