मैं
मैं
मैं वो सोने की चिड़िया नहीं,
जो तुम्हारे पिंजरे में चहचाती रहें,
तुम्हारे कहने से खाए,
रिश्तेदारों के सामने गुनगुनाए,
मैं तो जंगल की तितली ही सही,
धूल लगे पत्तों पर बैठकर मुस्कुरा लूंगी,
पिंजरे में बंद मखमल के बिस्तर नहीं चाहिए।
जिनको इस साल कोई दुख होता हो
मेरी तरक्की देख
तो उसका समाधान ढूंढ ले,
या मुझे बता दे,
दुनिया को बताएंगे तो
आपकी ही समस्या बढ़ेगी ।
खैर! मेरी ख्वाहिशें इतनी बड़ी नहीं;
मुझे तो जंगली तितली सी आज़ादी चाहिए
ये कैद की बादशाहत कुछ जमती नहीं मुझे;
अपनी तारीफों के पुल मेरी तस्वीर देख जो बांधते है;
उनसे बस यही कहना है मुझे
किसी दिन ज़माने के रिवाजों को तोड़ मुस्कुराऊं
तब भी इतनी ही तारीफ कर पाओगे क्या!!
