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shekhar kharadi

Tragedy

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shekhar kharadi

Tragedy

वहशी दरिंदा

वहशी दरिंदा

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जहां पशु स्नेह करुणा‌ कि भाषा समझते हैं

वहां इन्सान बर्बरता, निष्ठुरता का व्यवहार जानते हैं

भीड़ में नज़रें गड़ाकर, गिद्ध की तरह देखकर

वक्त और हालात को मारकर

एकांत का भरपूर लाभ उठाता रहा

शांति में हिंसक भेडिया बनकर

वासना में वहशी दरिंदा बनकर 

चीखों को हवा में दबोचकर

जिस्म को निरंतर नोचता रहा

असंख्य कृत्यों को अंजाम देकर

संत साधु बनने का ढोंग करता रहा

नारी का अंग अंग शोषण करके ।


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