विभिन्नता
विभिन्नता
क्या तुम्हें ऐसा लगता है?
मुझे तो कुछ ऐसा नहीं लगता,
शायद तुम जैसा सोच रहे हो,
वैसा मैं नहीं सोचता,
कुछ तुम्हारे विचार है ऐसे,
जैसे कि मेरे नहीं है,
कुछ तुम्हारे अंदाज़ हैं ऐसे,
जैसे कि मेरे नहीं हैं,
कैसे मुमकिन है,
इन दो विचारों का मिलना,
कहीं तुम अलग हो,
कहीं मैं तुम जैसा नहीं,
बात तो एक ही होती है,
पर हमारी समझ भिन्न होती है,
कहना तो कुछ होता है,
पर कुछ और ही कह जाते हैं,
कहने और सुनने में, बताने और सुनाने में,
जाने कितनी ही भिन्नता है,
जाने कितने ही विचार हैं,
हम सब लोगों और हमारी बातों में।