ख़ास दोस्त
ख़ास दोस्त
अब तुम मेरे दोस्त नहीं रहे
खो गए हो तुम दूर कहीं
दोस्ती न हमारी, कुछ अलग थी
मस्ती भरी प्यारी बातें
झगड़े और बस अपनी बाते
हमारा कॉम्बिनेशन ही कुछ अलग था
बातों को तो दूर
हम तो एहसासों को समझते थे
शब्दों का क्या
हम आंखों को पढ़ा करते थे
रोजाना मिलकर भी
एक दूसरे को मिस किया करते थे
हम अब भी मिलते हैं
पहले की तरह रोज़ तो नहीं
पर कभी कभी मिल लिया करते हैं
रोजाना मिलकर भी जितनी बाते करते थे
कई दिनों बाद मिलकर भी
अब बाते ही नहीं सूझती करने को
पहले न, हम राह देखा करते थे
कब मिले और बस बातें करें
कल ही तो मिले थे यार
फिर भी आज मिलकर बातें करनी हैं
कुछ सोचने की जरूरत नहीं
किस्से तो बस यूं ही निकल पड़ते थे
अब तुम मेरे दोस्त नहीं रहे
खो गए हो कही ज़िंदगी की राहों में
याद तो बहुत आती है तुम्हारी
जब मिलना नहीं होता हमारा
और मिल जाए अगर कभी
पहली सी वो बात नहीं होती
दोस्ती तो है पर वो खास दोस्त गुम हो गया
जो मेरा पर्सनल था
वो अब ज़माने का हो गया
बातों और किस्सों का सिलसिला भी बदल गया
ख़ुद से ज़्यादा गैरों की, पर्सनल से प्रोफेशन की
किस्सों और बातों में अब यही रह गया।