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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Abstract

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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

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बेवजह

बेवजह

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बेवजह इस बाजार मे चलता हूँ 

बेवजह इस प्यार मे पड़ता  हूँ 

 सब कुछ बिकता है, कीमत दे रहे 

बेवजह ही इंसान भी ढूढता हूँ !


दर जिसके गया ना सुकूँ मिला 

मिला तो बस इतना पैसा मिला 

कि चर्चा मे भी यही कामना है 

बेवजह ही भगवान भी ढूढता हूँ !


घर को अपना जला दिल्लगी कर रहे 

सर को अपना खपा बन्दगी कर रहे 

आस उनकी करे जो दिखा ही नहीं 

बेवजह ही ऐसा मेजबान भी ढूढता हूँ !!


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