जीतूँगा तब जब
जीतूँगा तब जब
जीतूँगा तब जब कोई हार होगी
सीखूँगा तब जब कोई रफ्तार होगी
क्या पाना क्या खोना ये किस्सा सा है
भीगूँगा तब जब कोई बरसात होगी !
देखा सब ऐसे जैसे साँझ हुई है
परखा सब ऐसे जैसे माँझ हुई है
जाते हैं सभी रुकते तो नहीं हैं
सखा फिर ऐसे जैसे सांच नहीं हैं !
कोई भी क्यूँ कहता ठहर लो ज़रा
सपने भी लगे जो संग साथ मेरे
आफत कोई तुमको भी पड़े ऐसे
जपने लगे फिर भी न पार लगे !
रोको अपनी या उनकी चाल
ठहरे तो ज़रा समझदार लगे
जीवन तो जाना है ठहरा कौन
अपना ऐसे कोई फिर क्या लगे !!