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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Others

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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

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कबसे य़ारी शुरू हुई पता नहीं

कबसे य़ारी शुरू हुई पता नहीं

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कबसे य़ारी शुरू हुई पता नहीं 

तैयारी हुई भी य़ा ना, खता नहीं 

मिलते ही हुए यूँ , कोई छू मंतर 

यारी भी हुई क्या , क्यूँ पता नहीं !


लौट के आया, जो, यार था 

आकर मिला, वो उसका प्यार था 

क्या मिला, जो, कुछ उधार था ?

अरे जो मिला वो ही अपार था !


कोई नहीं होता इतना भी सही 

यार तो है कोई , सपना नही 

चिर चितवन की जो आस रही 

मेरी तो अब सारी ही सांस रही !


ये जीवन फिर मिले ना मिले 

समेटते रहते क्यूँ सारे सिलसिले 

एक दिन सोचो, क्या होगा जब 

उठ जायेंगे सबके अपने काफिले !


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