STORYMIRROR

Fahima Farooqui

Abstract

3  

Fahima Farooqui

Abstract

मायाजाल

मायाजाल

1 min
558

रिश्तों का मायाजाल


दूर खड़े देखो तो

लगता ये सुन्दर संसार..

इसमें प्रवेश के है..

कई द्वार..

हर दरवाज़े पर..

खड़ी एक मूरत प्यारी..

लगती सुन्दर.

ये दुनिया सारी..


न जाने कितने नकाब लपेटे..

यहाँ हर रिश्ता खड़ा है..

अंदर से हैवान..

बाहर से है..

बाहर से फ़रिश्ता दिख रहा है..


ये कोई और दुनिया नहीं..

ये है सोशल मीडिया का संसार..

यह बिछा हुआ है रिश्तों का मायाजाल..

जिसमें उलझकर रह गए है..

बूढ़े, बच्चे और जवान..!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract