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Fahima Farooqui

Tragedy

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Fahima Farooqui

Tragedy

सपने

सपने

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हक़ीक़त की ज़मीं पर टूट कर बिखर गए।

हमने सजाए थे मिल के वो सपने गुज़र गए।


इक तुम हो रोज़ बिछड़ने की बात करते हो।

इक हम बिछड़ने के ख़्याल भर से डर गए।


किसकी बददुआ है नफ़रत फलफूल रही हैं,

रिश्ते मोहब्बत के तो लगता जैसे नज़र गए।


क्यूँ किसी और को इसका बात इल्ज़ाम दें,

अपने ही गुनाह है जो दुआओं से असर गए।


मुझ पर आई मुश्किलों का बार बार शुक्रिया,

इसी बहाने कई चेहरों से नक़ाब उतर गए।


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