STORYMIRROR

Fahima Farooqui

Tragedy

4  

Fahima Farooqui

Tragedy

मुद्दे और भी हैं

मुद्दे और भी हैं

1 min
482

आरक्षण की कैंची चलाए साहिब।

यूँ अपनी कुर्सी  बचाए साहिब।


सारा अन्न भर लिया तिजोरी में,

ग़रीब क्या पत्थर खाए साहिब।


जो जोड़ते हाथ पांव सबके देखो,

उन्ही पर लाठी उठाए साहिब।


कभी तो हक़ीक़त की रोटी नसीब हो,

कबतक वादों की खीर खाएं साहिब।


ग़रज़ तो फूल नही तो चुभाते शूल,

तुम्हे क्यूँ न ज़रा लाज आए साहिब।


चारागर को हैं दिखाते कारागार,

देखो कैसा आतंक मचाए साहिब।


शिक्षा, बेरोज़गारी भुखमरी मुद्दे छोड़,

बस हिंदू मुस्लिम राग गए साहिब।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy