STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Abstract

3  

Surendra kumar singh

Abstract

शोर शराबा

शोर शराबा

1 min
419


शोर शराबे से भरी हुयी 

इस इठलाती हुयी दुनिया में,

मेरे मन के सुनसान आंगन में

जब तुम उतरे ही गये हो

 तो देखें किसे,

मुस्कराएं किसके साथ

गुनगुनाएं किसके साथ।

दुनिया तो आज भी वैसी की वैसी है

जैसी तुम्हारे आने से पहले थी।

अपनी तरक्की पर इठलाती हुयी,

हृदयहीन होती हुयी

चलो ने मेरे साथ ही दुनिया में

कि होश में होकर

दुनिया देखे अपना निजाम

और तरक्की

वैमनस्यता और रक्त में डूबी हुयी।

सम्भावना तो है

दुनिया बोल सकती है 

आदमी की तरह

और महसूस भी कर सकती है

अपने हालात आदमी की तरह।

जैसे कि देश बोल रहे हैं

राजधानियां बोल रही हैं

और आदमी चुप है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract