धूप-छाँव
धूप-छाँव
तुम सामने हो मगर बात होती नहीं,
छत एक ही मगर मुलाकात होती नहीं,
रिश्तों में नोंकझोंक होती है हमेशा,
हमेशा के लिए रिश्तों में दरार होती नहीं,
एक साथ चले हैं धूप-छाँव में हमदम,
अब राह-ए-जिंदगी अकेली कटती नहीं,
जिंदगी का ख़ालीपन हमसे न पूछो,
किसको ये सोचने की भी आदत होती नहीं।