सपना
सपना
ना दौलत ना शोहरत तुझसे मांगूँ,
बस ये इल्ज़ाम हटा दे नाकामी का,
कितनी गुज़ारी रातें ये सोचते हुए ,
जरूरतों के साथ सपने भी पूरे करूँ ,
ना आँखों में नींद आयी रात भर मुझे,
महीने के दिन आखरी उतरे जिद पर,
दौड़ता रहा हमेशा भागा नहीं मैदान से,
उसकी हर गेंद को खेला पुरी तरहा,
सपने कहाँ से आते नींद तो आये,
मैं हरदिन खुद से मिला अज़नबी की तरहा।
