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SURYAKANT MAJALKAR

Abstract Tragedy

4  

SURYAKANT MAJALKAR

Abstract Tragedy

सलाम दुआ

सलाम दुआ

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वो आते है मिलने हमसे

और दूरसे ही सलामदुवा करते है,

हसते हुवे रुक्सत करते है और

तन्हाई मेरे नाम करते है,


आती है याद तो वक्त सँभल लेता ठिक था,

कभी वो खुद मिलने आते है

और बैचेनी बढ़ाते है तासीर से,

किस को दिल में बसाना भी क्या बेवकूफ़ी है, तो क्या कम है?


हम जरासी दीदार पर होश गवा बैठे, हज़म न हुआ,

तुभी क्या लिख़ता 'सुर्यांश" स्याही तो आसुओं में बह गयी,

कुछ बताते नहीं तो ठीक था,

कुछ लिख़ता न था सही था।


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