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Renu kumari

Abstract Tragedy

4.5  

Renu kumari

Abstract Tragedy

चाहत

चाहत

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जो उम्मीद थी वो टूट गई।

जो चाहत थी वो छूट गई।

चाहा था जो वो ना मिला।

किस्मत से नही है खुद से है गिला।

पा भी न सकी खो भी न सकी।


पत्थर बन गया दिल मेरा जो कल तक

किसी के लिए धडकता था।

और दिलदार के चेहरे पे एक सिकन तक न पड़ी।

ठान लिया था कि खुद को खो देना है।


दुनिया के लिए नहीं उसके लिए

अपना सब कुछ खोना है।

आज वो हँसना भूल गई, आज वो जीना भूल गई

उसके प्यार के लिए बदला था खुद को।


आज वही अपने आँसू उन

आँखों मे रखना भूल गई।

कास जिंदगी एक मौका देती तो

किस्सा कुछ और होता।


अपनी बिखरी हुई जिंदगी का

एहसास न होता।

कसम है आज खुद को उसके प्यार का

अब इज़हार न होगा।


दिल में उसे पाने का ख़याल न होगा।

वो चाहे हो जाए किसी और का

ये दिल अब किसी और का न होगा।

वो होगा किसी और कि बाहो में और

मेरा दिल तन्हाई का शिकार न होगा।


टूट के स्पंद बिखेरेंगे और एक बार

फिर तन्हाई से प्यार होगा।

कसम है खुदा तेरी अब इस दिल को

किसी पे ऐतबार न होगा।


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