प्रियतम का इंतज़ार
प्रियतम का इंतज़ार
प्रियतम के इंतज़ार में ठहर गया है यौवन
विरह की अग्नि में जल रहा देखो मेरा जीवन
तृष्णा से व्यथित हुई निर्मल जल की धार
कठिन हैं प्रियतम मेरे इंतज़ार की राह
दहलीज के उस पार खड़े हो और मैं हूँ इस पार
क्या तुम्हें चुभती नहीं नश्तर सी यह रैना
पुकार मेरी कर अनसुनी तुम जो चले गए
आए ना वो बसंत जो तुम संग बीत गए
तेरी आँखों के सपने मैंने सँजोए थे
तेरी जुदाई के गम में नैना कितना रोए थे
ज़ुम्बिश दिल की थम गई जो तुमने दहलीज को पार किया
अपनी बेरुखी का खंजर तुमने मेरे दिल के पार किया
हम फिर भी कर रहे हैं तुम्हारा इंतज़ार सदियों से
लौट आओ तो धड़कन मिल जाए इस दिल को
मेरे ख़्वाबों का आशियाना मुक़्क़मल हो जाए
जिस पल मेरे इंतज़ार को अंजाम मिल जाए

