हर पल हर लम्हा
हर पल हर लम्हा


पास होते हो तो तुम्हारी हर चीज़ का खयाल रहता है
दूरी में सिवा तुम्हारे किसी चीज़ का ख्याल नहीं रहता है
मतलब सीधा भी सही है... उल्टा भी सही है
तुम्हें समझने के लिए क्यूं तुमसे दूरी जरूरी है
साथ रहकर कहानी क्यूं अधूरी ही बनी रहती है
जो पल बिताते हैं साथ में...
वो जाने कहां गुम हो जाते हैं
लेकिन कहीं न कहीं तो होते होंगे
वो लम्हे हवा में तो नहीं है कहीं
किस दिशा किस गली या शायद
किसी दरिया में हल्के बह रहे होंगे
मुझे वो समेट के रखने थे तह लगा के
किसी अलमारी की दराज में संभाल के
कुंदन ज़ेवर से भी कीमती हैं वो पल लम्हे
क्यूं ना रखा उन्हें लाल डिबिया में सहेज के
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नादान थी जो उनकी कीमत नहीं समझ पाई
या सोचा था की इनसे रोज ही मुलाकात होगी
दुनियादारी निभाते हुए दौर ही खत्म हो गया
मैं समझ पाती उससे पहले ही...
हाथ से वो लम्हा वो पल खिसक के छूट गया
चलो अगली मुलाकात में ये काम करूंगी
उन लम्हों को बातों को दिल में कैद करूंगी
फिर यादों की चाबी से खोलकर अपना दिल
मैं इत्र से महका के उन पलों को सहेज लूंगी
और इनसे भी कहूँगी की डिबिया छोटी सी है
हर पल को उसमें कैद करना थोड़ा मुश्किल है
या तो कोई जादू भरा बड़ा संदूक तोहफे में दो
या फिर मुझसे रोज़ मिलने का पक्का वादा करो।