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Sarita Kumar

Romance

4  

Sarita Kumar

Romance

वक्ता

वक्ता

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सही कहा था तुमने ,

एक किताब ही हो तुम 

सदियों से नहीं बदला कुछ भी 

हर एक लफ्ज़ के वही मायने हैं 

आज भी तुम उतने ही प्रेमिल हो 

रत्ती भर नहीं बदला है तुम्हारा प्रेम 

बल्कि चक्रवृद्धि ब्याज 

लग कर बेशुमार बढ़ गया है 

लेखक से वक्ता बन गए हो 

अभिव्यक्ति का हुनर 

भी आ गया है 

करने लगे हो जलेबी सी मीठी बातें 

और आम के अचार जैसी चटपटी भी 

उस शाम की रस माधुरी 

जैसी लज़ीज़ बातें .... 

तो पहले कभी नहीं की थी 

अगर कहूं कि बदल गए हो तुम ... 

तो तुम्हारा बदलना बेहद लाजवाब है 

बरसों से सहेजी दिल के जज़्बात 

एकाएक फूट पड़ा और 

उसकी खुशबू 

दसों दिशाओं में व्याप्त हो गई 

जैसे वसंतोत्सव आ गया हो , 

महक उठा समूचा संसार 

एक बार खोला तुमने 

जो अपनी जुबान 

भर दिया हीरे मोती 

और जवाहरात से मेरा ज़हान ।


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