इश्क
इश्क
इश्क अब स्याही बनकर
पसर गया है कागज़ों पर।
कभी गीत, कभी नज़्म,
कभी शायरी, कभी ग़ज़ल।
कभी वसंत की बयार,
कभी सावन की फुहार।
कभी चांदनी रात,
सितारों की बारात।
कभी पतझड़ के मौसम में
बेहद विरानी सी तन्हा रात।
कभी इंद्रधनुषी सपनें ...
कभी सपनों में वो अपने।
इश्क बन गया है अब स्याही,
न जाने क्या कमाल कर दे।
रोक लो कलम मेरी,
स्याही को जम जाने दो।
पानी से बर्फ बनने तक,
बर्फ से हिमालय बनने तक।
जब्त कर लो मेरे इश्क को,
फौलादी मुट्ठियों में भींच कर।
बिल्कुल वैसे ....
जैसे वक्त को रोक रखा है मेरे लिए।
सदियों बाद भी तुम वैसे के वैसे हो
जैसे दशकों पहले हुआ करते थे।

