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Arunima Bahadur

Romance

4  

Arunima Bahadur

Romance

बस तू

बस तू

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सोचती हूँ,मैं लिखती हूँ,

कुछ तुझमे ही जीती हूँ,

बस तुझमे ही रहती हूँ,

सिमरन तेरा ही करती हूँ,


तेरे ही संग रहती हूँ,

जो लिखू तो शब्द ही तेरा होता हैं,

जो बोलू बस भाव ही तेरा रहता हैं,

बस तुझको ही लिख जाती हूँ,


लिखते लिखते खो जाती हूँ,

कौन है तू ,कहाँ से आया,

ये अनबुझी पहेलियां हैं,

बस तू अंतस में समाया,


बस यही लम्हे ही सहेलियां हैं,

कुछ बतियाती हूँ, कुछ मुस्काती हूँ,

नैनो में ही कुछ गाती हूँ,

न बुझनी मुझे अब कोई पहेलियां,


प्यारी लगती हैं भावो की अठखेलियां,

कितना प्यारा प्रेम भाव मे जीना,

प्रेम में रहना,प्रेम में खोना,

न रहा अब कुछ भी मेरा,

बस सब तेरा ही तेरा,


हर पल बस खोती जाती हूँ,

बस एकमय होती जाती हूँ।।


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