ढाई आखर की प्रीत
ढाई आखर की प्रीत
ढाई आखर की प्रीत मेरे
जगी जब से बीहड़ मन में,
जीवन ने फिर डाला डेरा
तब से मेरे निर्जन तन में,
भर उठीं उमंगें जीवन में अब
नव किरणों का हुआ उजाला,
ओढ़ लिया है तन-मन ने अब
खुशियों का रंगीन दुशाला,
रोम-रोम अब राग है तेरा
श्वास-श्वास है तेरा मनका,
धुन गाती है दिल की वंशी
मेरी इक-इक धड़कन का,
तुम हँसो मुझमें तो मैं हँसूँ
तुम रोओ मुझमें तो रोऊँ, मैं,
तुम हुए मुझमें यूँ विलय
हर भाव तुम्हीं से बोऊँ, मैं,
प्रेम बड़ी ही अजब है बाज़ी
जो हारे इसमें वो ही जीते,
प्रेम की गागर है कुछ ऐसी
भरो जितनी ये उतनी ही रीते।