STORYMIRROR

shekhar kharadi

Romance Inspirational

4  

shekhar kharadi

Romance Inspirational

विरह व्यथा

विरह व्यथा

1 min
1.3K

रूठा है प्यार टूटा है साथ

मैं जाऊँ कहा बताऊँ कहा ?

भीतर कि ये विरह व्यथा

निरंतर आग उगल रही है।

सारे भाव निरर्थक बनकर

आज मेरे जिस्म में

चुर..चुर होकर चुभें

पीड़ा निष्ठुर बनकर

मन को पिटती रही

हृदय बेसुध होकर देखता रहा


व्याकुलता का बोझ लिए

अब जीना मुझे प्रतिक्षण यहाँ

मौत सा प्रतीत होने लगा हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance