मुझे इश्क़ है तुमसे
मुझे इश्क़ है तुमसे
सुनो!
मुझे नहीं है मोहब्बत तुमसे
हाँ नहीं है
मोहब्बत
यह तो
बेजान से भी होती है न
हर उस चीज से जो
काफ़ी वक़्त से हमारे पास हो
यह तो
बासबब भी होती है
दुनिया के हर उस शक़्स से होती है
जिसे उस ग़ैब ने बनाया है
मोहब्बत
मुझे है मोहब्बत उस शख्श से
जिसने मुझे संवारा है
जिसने मुझे हाथ थाम कर
गिरने से बचाया है
पर
यह निगोड़ा इश्क़
इश्क़ तो कम्बख़्त तुमसे हो बैठा
जो
उस ग़ैब की दी हुई अलामतों में से
एक है!
हाँ वो अलामत जिसमें वो ख़ुद है
उसका नूर है
उसका अक्स है
क्योंकि
इश्क़ बेसबब है
जो होता है
तो बस हो जाता है
कब ,क्यों ,किसलिए ,किस्से?
इश्क़ इन सब सवालों से परे
बस हो जाता है
वो नहीं देखता
इसमें जान जाएगी
या
ईमान जाएगा
कम्बख़त पहले ख़ुद को ख़ुदा बनाता है
फिर ख़ुद ख़ुदा के करीब ले जाकर
ख़ुदा के हवाले कर
छोड़ देता है ख़ुदा की नज़र
यह एक मर्ज़ है या सुकून है
नहीं पता
पर इश्क़
इश्क़ है
जो मुझे तुमसे है......