ख़ामोशी
ख़ामोशी
सुनो !
आज रात को
यादों की खुरदुरी ज़मीं से दूर
अहसासों की
मख़मली चादर पर उतार देना चाहता हूं
जिसमें तुम दिल की खटखटाहट सुनो
और
ख़्वाबों में पड़ी दरार को
बेपर्दा कर सको
बेपर्दा कर सको उन किताबों को
जिनके हर्फ़ तुम्हारे बारे में ही
अफ़साने सुनाते हैं
दिल की आख़िरी दराज़
में पड़े वो धूल भरे ख़त
जिनके एक-एक हर्फ़
में तुम्हारा चेहरा खिल जाता है
और यह रात यूँ ही
एक बेपर्दगी में गुज़रे
न मैं पर्दे में रहूं
न तुम पर्दानशीं हो
न तुम कुछ कहो
और मेरे लफ़्ज़ बेअल्फ़ाज़ हो जाएं
यह रात लंबी और लंबी हो
उतनी जितनी
हमारे बीच अब ख़ामोशी है।