प्रेम
प्रेम
ढलती शाम
और पीले पड़ते चाँद के साथ
निखर जाता है प्रेम
उन तारों की तरह
फैला देता है अपने पर
चुनने लगता है।
संयोग के मोती
उड़ेल देता है दूर कहीं
विरह की उमस
तपती धरा पर।
शीतल चाँदनी की
कालिंदी बिखेर कर
बुनने लगता है
नए घोंसले प्रेम
अपनी अंजुरी में
समेटता हुआ इस संसार की तपन
एक नई तृप्ति की तलाश में
निकल जाता है प्रेम
सुना है दबे पांव ही आता है प्रेम।